रावण जी उतने ही महान थे जितने गोडसे आजादी के मसीहा.
बेशक ब्रम्ह हत्या का पाप किया रामजी ने लेकिन रावण को जस्टिफाई तो न ही करो.
अभी एक दीदी हमें बता रही थी कि उन्हें भाई रावण जैसा चाहिए.
मने ऐसा भाई जो अपनी बहन के दुस्साहस और दुश्चरित्र को देखे बगैर किसी की पावन पत्नी का अपहरण कर ले. वो भी छल और कपट से.
बदला ही लेना था तो भिडते सामने से न रावण भैय्या.
राजा थे आपके रावण भैय्या, न्याय तो तब होता जब आप सूर्पनखा को दण्डित करते. आपने तो उल्टे पीडित को ही परेशान किया.
एक भैय्या रावण की तरफ से बोले रावण जी बडे बिद्वान थे. बेद शास्त्र और मन्त्रों पर गहन पकड थी उनकी.
मने बिद्वान है तो कुछ भी करोगे????
इस तरह तो डाक्टर, इन्जिनियर, प्रोफेसर और बैज्ञानिक को बहन बेटियों के अपहरण का सर्टिफिकेट दे देना चाहिए.
उसे जिसके घर की बहू, बेटी, बहन पसन्द आए उसे उठा ले जाए.
भैय्या जी कहने लगे कि रावण ने सीताजी का हरण जरूर किया लेकिन कुछ किया तो नहीं.
मतलब भैय्या को ये भी नहीं पता कि कुबेर की पत्नी ने रावण को श्राप दिया था कि अगर वो किसी स्त्री से जबरदस्ती करेगा तो उसका सिर फट जाएगा.
एक दोस्त बताने लगी रावण जी सा भाई हो तब तो मजा ही आ जाए.
मतलब आपका भाई त्रिलोक बिजयी राजा हो तो आप लौंडें छेडेंगी????
अरे कुछ सम्मान था कि नहीं लडकों का त्रेता युग में.
ये मीटू वाले तो अब आए हैं लक्ष्मण जी की तलवार ने सबसे पहले मीटू किया था सूर्पनखा जी के नाक(इज्ज़त) का.
अरे दीदी ये जो "चाहे चाकू सेब पर गिरे, चाहे सेब चाकू पर.. घायल सेब ही होता है" वाली कहावत है न.. वो सभी लडकों पर लागू नहीं होती.
मने "नो मतलब नो" लडके भी बोल सकते हैं यही तो बताना चाह रहे थे लक्ष्मण भैय्या. इस लाइन पर आप लडकियों का कापीराइट थोडे है.
चाय वाले भैय्या बताने लगे..... ज्वान रावण भाई थे बडे बिद्वान मुला काम थोड़ा गलत कर गए.
जैसे ये बामपंथी लोग हैं न.... होते तो ये भी हैं बडे बिद्वान लेकिन हर बुरे काम में इनका ही हाथ होता है.
मतलब तब भी बामपंथ था और रावणजी थे बामपंथी. लेकिन वो तो शिव की पूजा किया करते थे भैय्या .
और बामपंथी तो नात्तिक बने फिरते हैं.
अन्त में रावण समर्थक एक बहन जी ने सच्चाई बताई.....
रावण के पास गाडी थी, बंगला था, बैंक बैलेंस था और राम के पास क्या था????
एक कैकेयी जैसी माँ,,
जिसने उन्हें दर दर की ठोकरे खाने बन भेज दिया.
कहाँ रावण तीनों लोकों का राजा था, सोने की लंका में रहता था, आटोमेटेड बिमानों में उडता है, सारी सुख सुबिधाओं से सम्पन्न था.
वहीं राम जंगल की कुटिया में रहते थे, कन्द मूल खाते थे, जमीन पर सोते थे और पैदल बिना ब्राण्डेड शूज चलते थे.
फिर भी रावण ने सीता जी को मौका दिया बेहतर जिन्दगी का.
कौन लडकी नहीं चाहेगी बेल सेटेल्ड हाईप्रोफाइल जिन्दगी जो रावण के पास थी.
मने बहन जी वैसे तो फेमनिज्म का झण्डा बुलन्द करेंगी, दहेज़ लोभियों के बिरूद्ध मोर्चा निकालेंगी.
लेकिन उन्हें चाहिए रावण जैसा कोई सोने की लंका और आटोमेटेड बिमान वाला लौंडा.
बहनजी को कौन बताए कि वो त्रेतायुग था और उस स्त्री को जमीन पर सोने और कन्द मूल वाला राम चाहिए था न कि सोने के महलों वाला रावण इसीलिए वो लडकी सीता थी.
एक भावुक कपल चिल्ला पडा : रावण को बचपन से क्रश था सीताजी पे,एण्ड "Everything is fine in love and war"
मने इन चूतियों से कौन पूँछे कि प्रेम के नाम पर तो लोग हत्या, बलात्कार और एसिड तक फेंक रहे क्या वो जायज है???
प्रेम और शादी के वादों के साथ लोग छल कपट कर रहे... क्या वो सही है.
किसने बोली ये बेहूदा लाइन.
उन्होंने ने बोला राम बुरे थे....
उन्होंने सीता का त्याग किया.
वास्तव में राम ने सीता का परित्याग कभी किया ही नहीं.
बल्कि रघुवंश की महारानी सीता ने इच्छवाकू बंश के सिंहासन पर उठ रहे प्रश्नों के उत्तर में राजा राम से ऐसा करने को कहा था.
दूर महाराजा राम और महारानी सीता हुए थे.
राम और सीता नहीं.
अपने सम्पूर्ण जीवन राम ने सीता को ही अपनी पत्नी माना.
राम के हर बिपत्ति में सब कुछ छोड जो साथ रही वो सीता जी थी.
और सीता जी के लिए सागर को बाँधकर त्रिलोक बिजयी रावण से जो लडा वो राम था.
राम जैसा युगों में कोई एक होता है.
बाकी रावण तो हर एक में है. मुझ में भी आपमें भी.
अब तो लोग रावण से भी गए गुजरे हैं.
##दशहरा