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आयुर्वेदः अमृतानाम ☘️
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Ayur_Vaidhya (Hindi)

आयुर्वेदः अमृतानाम। यह शब्द स्वास्थ्य और जीवन के लिए अमृत की तरह है। आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जिसमें जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग किया जाता है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। nnआपके लिए हमारा चैनल 'Ayur_Vaidhya' लाया है जिसमें आपको आयुर्वेद से जुड़ी ताज़ा ख़बरें, जानकारी और पोस्ट मिलेगी। हम आयुर्वेद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हैं ताकि आप अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकें। nnध्यान दें: हमारे सर्वर या चैनल पर कोई भी फ़ाइल होस्ट नहीं की जाती। सभी सामग्री गैर-संबद्ध तृतीय पक्षों द्वारा प्रदान की जाती है। हमारा चैनल तृतीय पक्ष द्वारा होस्ट की गई सामग्री के लिए ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं करता।

Ayur_Vaidhya

01 Apr, 07:22


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Ayur_Vaidhya

19 Feb, 17:15


Pedia
🔹16 संस्कार
Short trick

गपु सी जनानि का अचूक उपवेद  ,समान विवाह वान सन्यासियों का अंत

ग-गर्भाधान

पु-पुसवन

सी-सीमन्तोन्नयन

ज-जातकर्म

ना-नामकरण

नि-निष्क्रमण

अ-अन्नप्राशन

चू-चूणाकर्म

क-कर्णवेधन

उप-उपनयन

वेद-वेददारम्भ

समान-समावर्तन

विवाह-विवाह

वान-वानप्रस्थ

सन्यासियों-सन्यास

अंत-अंतयोष्टी

Ayur_Vaidhya

15 Jan, 15:09


संधि

•सन्धि का मुख्य अर्थ है – जोड़ना । व्याकरण के नियमों के अनुसार स्वर , व्यञ्जन तथा विसर्गों के विकारयुक्त मेल को सन्धि कहते हैं सु – आगतम् स्वागतम् ।

•सन्धि के तीन भेद हैं १. स्वर सन्धि । २. व्यञ्जन सन्धि । ३. विसर्ग सन्धि ।

•स्वरसन्धिः

१. स्वर्णदीर्घसन्धिः

अकः सवर्णे दीर्घः ६ / १ / १०१ ।।

जब अ इ उ ऋ लू के बाद में ये ही स्वर , हस्व या दीर्घ रूप में हों तो दोनो के स्थान पर तदनुरूप दीर्घ हो जाता है ।

उदाहरण
गण + अधिपतिः = गणाधिपतिः ।
सती + ईश : = सतीशः ।

२. गुणसन्धिः

आद्गुणः ६/१/८७ ।।

यदि अ या आ के बाद ऋ य ऋ हो तो दोनो के स्थान पर अर आदेश हो जाता है । लू आता है तो अल् आदेश हो जाता है । इ , ई हो तो ए आदेश हो जाता है । उ , क हो तो ओ आदेश हो जाता है ।
उदाहरण
गण + ईशः = गणेशः ।
सर्व+ उदय : = सर्वोदयः ।

३. वृद्धिसन्धिः

वृद्धिरेचि ६/१/८८ ॥

यदि पूर्व पद के अन्त में अ या आ और उत्तर पद के आदि में ए , ऐ , ओ , औ हो तो ए.ऐ के स्थान पर ऐ आदेश हो जाता है तथा ओ , औ के स्थान पर औ आदेश हो जाता है । ए , ऐ – ऐ , ओ , औ- औ ।

उदाहरण
देव + ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम् ।
कृष्ण + ऐकत्वम् = कृष्णैकत्वम्।
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४. यण् – सन्धिः

इको यणचि ६/१/७७ ।।

इक् के स्थान पर यण् होता है , अच् प्रत्याहार के परे होने पर ।
अर्थात् जब पूर्व पद के अन्त में इ या ई के बाद उन्हीं स्वरों को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो इ , ई , के स्थान पर य् हो जाता है ।
यदि पूर्व पद के अन्त में उ या ऊ हो तो उसके बाद उन्हीं स्वरों को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उ , या ऊ के स्थान पर व् हो जाता है ।
जब लृ के बाद लृ को छोड़कर अन्य स्वर हो तो लृ के स्थान पर ल् आदेश हो जाता है ।

उदाहरण
सुधी + उपास्ये = सुध्युपास्यः।
मधु + अरिः = मध्वरिः ।

५.अयादिसन्धिः

एचोऽयवायाव : ६/१/७८ ।।

एच के स्थान पर क्रम से अय् , अव् , आय , आव् से आदेश होते हैं अच् के परे होने पर । यह अयादि आदेश विधान करने वाला विधिसूत्र है ।
एच् ( ए , ओ , ऐ , औ ) के बाद जब उत्तर पद के आदि में कोई स्वर आता है तो इनके स्थान पर क्रमश : अय् , अव्, आय् , आव् आदेश होता है ।

उदाहरण
हरे + ए = हरये ।
विष्णो + ए = विष्णवे ।

६.पूर्वरूपसन्धिः

एङः पदान्तादति ६ / १ / १० ९ ।।

पदान्त एङ् से हस्व अकार के परे होने पर पूर्व और पर के स्थान पर पूर्वरूप एकादेश होता है ।

पूर्व पद के अन्त में यदि ए या ओ हो और उत्तर पद के आदि में हत्व अ हो तो वह ए या ओ का रूप धारण कर लेता है । पूर्वरूप होने पर अ का चिन्ह ( ऽ ) होता है ।

उदाहरण
हरे + अव = हरेऽव ।
विष्णो + अव = विष्णोऽव

#copied

व्यंजन संधि

हल् अर्थात् व्यञ्जनों में होने वाली सन्धि। कहीं हल से हल् परे और कहीं पूर्व में हल् किन्तु पर में अच् हो तो भी होने वाली सन्धि हत्सन्धि या व्यञ्जन सन्धि कहलाती है ।

१. श्चुत्वसन्धिः

स्तोः श्चुना श्चुः ८/४/४० ॥

१. सकार और तवर्ग ( त , थ , द , ध , न ) के साथ यदि श और चवर्ग ( च , छ , जद झ , न ) हो तो शकार और चवर्ग ( च , छ , ज , झ , न ) हो जाता है ।
पूर्व पद के अन्त में- स् त् थ् द् ध् न्
उत्तर पद के आदि में -श् च्छ् ज् झ् ञ् – श् च् छ् ज् झ् ल्

उदाहरण

रामस्+ चिनोति = रामश्विनोति ।
रामस् + शेते = रामश्शेते ।

२.ष्टुत्वसन्धिः

ष्टुना ष्टुः ८/४/४१ ।।

पूर्व पद के अन्त में यदि स अथवा तवर्ग ( त , थ , द , ध , न ) का कोई व्यञ्जन हो और उत्तर पद के आदि में ष् हो अथवा टवर्ग ( ट , ठ , ड , ढ , ण ) का व्यञ्जन हो तो उनके स्थान पर प और टवर्ग ( ट , ठ , ड , ढ , ण ) हो जाता है ।

उदाहरण
रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः ।
कृष्णस् + टीकते = कृष्णष्टीकते ।।

३. पदान्त जश्त्व सन्धि

झलां जशोऽन्ते ८ / ३ / ३ ९ ।।

यदि पूर्व पद के अन्त में कोई झल् प्रत्याहार ( वर्ग के प्रथम , द्वितीय , तृतीय , चतुर्थ ) और ऊष्म वर्ण ( श , ष , स , ह ) हों तो उनके स्थान पर जश् ( ज ब ग ड द ) हो जाता है । ( जश् वर्ण अर्थात् तृतीय वर्ण हो जाता है ) ।

उदाहरण
वाक् + ईशः = वागीशः ।
अच् + अन्त : = अजन्तः ।

४. अपदान्तजश्त्व सन्धि

झलां जश् झशि ८/४/५३ ।।

पूर्व पद में स्थित झल् वर्ग के प्रथम , द्वितीय , तृतीय , चतुर्थ और ऊष्म वर्ण ( स , श , ष , ह ) हों तो उनको जश् अर्थात् अपने वर्ग का तृतीय वर्ण ( ग ज ड द ब ) हो जाता है यह सन्धि पद के बीच में होती है ।

उदाहरण
लभ् + धा = लब्धा ।
सिध् + धिः = सिद्धिः ।

•विसर्गसन्धिः
व्यञ्जनों तथा विभिन्न स्वरों के योग से विसर्गो का परिवर्तन श् , ष् , स् , र् , ह् , य् लोप के रूप में होता है।
स् के रूप में- ” विसर्जनीयस्य सः ८/३/३४ ।।
यदि विसर्गों के आगे प्रत्येक वर्ण के ( प्रथम , द्वितीय , त , थ , श , ष , स , ह ) वर्ण हों तो विसर्गों को स् हो जाता है ।
उदाहरण
विष्णुः + त्राता – विष्णोस्त्राता ।
यशः + काम्यति = यशस्काम्यति ।
Cpd

Ayur_Vaidhya

15 Jan, 15:09


👉भावप्रकाश महत्वपूर्ण संदर्भ 👈
1. वातरोगेषु सर्वेषु आस्थापनम हितम - धान्याम्ल
2. किंचित गाढौ बहुद्रव्यम - फाणित
3. सद्यो ज्वरे वामयते,जीर्ण ज्वरे विरेचयते -भा.प्र
4. पर्पटक श्रेष्ठ - पितज ज्वर
5. एकादश लक्षण युक्त राजयक्ष्मा नाशक - भृगु हरितकी
6. वातरोग की महौषध- त्रयोदंशांग गुग्गुलु
7. दुषचिकित्सयो दुर्विज्ञो महागदम - अंन्नद्रवशुल
8. विसर्पवत शोथ विसर्पवत चिकित्सा- स्नायु रोग
9. 80 वात व्याधि नाशक - रास्ना
10. सर्पगंधा - सर्पविष ,लुता विष , आखुविष, वृश्चिक विष नाशक
11. वन्हिस्मृती बुद्धिप्रदम - ज्योतिष्मती
12. पितहरतम मधुर तिक्तं सर्वकंडु नाशनी - हरिद्रा
13. विशेषत नेत्र मुख कर्ण रोग नाशक - कालयेक (दारुहरिद्रा)
14. त्वकदोष प्रमेह नाशक - वनहरिद्रा
15. अतीसारह्नि बालानां रोगनाशम- अतिविषा
16. वायो पलाण्डु परमौषधम
17. परम दिपनम् पाचनम् - सौर्वचल लवण
18. स्फटिक सर्दश्य - टंकण श्रेष्ठ
19. विशेषत परमगुल्म नाशक - क्षाराष्टक
20. स्वादु तिक्तम कषेतपीतम छेदेरक्तम तनुशीतम ग्रंथि कोटर सम्पन्नम - चंदन ग्राही स्वरुप
21. युकानाशक- सरल
22. कान्चन संकाश पक्व जम्बु फलोपम - गुग्गुलु
23. मरु भुमि परं जायते प्रायश पुरपादपा- गुग्गुलु
24. हिमस्पर्श उष्ण वीर्य - तिल तैल
25. विशेषात अमृत शीशों - नवनीत
26. सुधासम - गौ धारोष्ण क्षीर
27. क्षुधा आधिक्य हर - माहिष क्षीर
28. बालजीवन -, क्षीर
29. पीनस नाशक - गौमांस
30. परमशुलकर - शुष्क मांस
31. अर्दित नाशक - रोहीत मत्स्य मांस
32. वत्सनाभ - 3 मास सेवन - अष्टमहाकुष्ठहर
6 मास - कामरुप
1 वर्ष - सर्वरोगनाशक
33. सद्यो जात दंतनी मल - कंकुष्ठ
34. महावृष्य सदादृष्टि बलप्रद सर्वकुष्ठ नाशक - पारद
35. विशेषात मेहनाशनम - नाग
36. सिहायथा हस्तिगणम नियन्ति तथैव ......... अखिलं मेह वर्गमनाशनम - वंग
37. महागदजनन - अशुद्ध रजत भस्म
38. मदातत्यहर - द्राक्षा
39. वसामेहनाशक- शिशिंपा कषाय
40. परमबस्ति शोधन सोमरोगह्न - नारीयल
41. गर्भदायक - वटसुंग
42. तीव्रसृग्दनाशनम् - अशोक
43. अंजने कामलार्तानाम - द्रोणीपुष्प अंजन
44. योनि रोगनाशनं - लज्जालु
45. मुषिका विष नाशक - महानिम्ब
46. युकालिक्षा नाशक - धतुरा
47. गर्भपातनी गर्भनुत - लांगली
48. परमगुल्मबस्तिशुलहर - एंरडपत्र
सप्तवृद्धिरोगनाशक - एंरडपत्र
कटिशुले गृधस्यापरमौषधम- एंरडपत्र
49. मांगल्यानामाधेय- जीवन्ती
50. आस्यद्रौगन्धय एवं आंध्यनाशनम् - अंकोल
51. उत्तम पित रेचक - कुटकी, नौसादर , एरंड
52. परम कोष्ठ शुद्धिकरण - आरग्वद
53. मृदु अन्नपायित्वात - आरग्वद
54. विषकर,गर्भपातर - वृद्धि
55. तुलग्रंथिसम- ऋद्धि
56. मणिच्छिद्रा - मेदा
57. वसुच्छिद्रा - महामेदा
58. विशेषतफिंरगनाशनी - चोपचीनी
59. हिंगुउदवेष्टंगुणम - यवानि
60. स्फुरताकारक - रक्तचित्रक
61. पारदबंधकारक - रक्तचित्रक
62. गुदाजापहम - चव्य विशेषत:
63. गुडसयुक्ता जीर्णज्वरे मंदाग्नि सस्यते - टिप्पणी
64. रक्तपीतह्नप्रमेहह्न परमवृष्यरसायनमं - आमलकी
65. चंद्रकांत समप्रभं - कांड
66. गोस्तनी सन्निभमश्रेष्ठ - मृद्विका
67. कांचाभ श्रेष्ठ - सौर्वचल लवण
68. काकतुंडीनिश श्रेष्ठ - अगरु
69. औण्डीकपुष्पप्रतिकाश - मन:शिला
70. मासरक्तत्वकप्रसादकर - संवाहन
71. सद्योबलकृतम - आहार
72. सकलेन्द्रियातर्पक - अभ्यंग
73. उतमकामलाहरमसिद्धिकारक -कान्तास्यपात्र/काचपात्र
74. शुक्रदपरम - उदवर्तन
75. कललस्य समवायोघनीभुत - गर्भ का द्वितीय मास
76. द्रव्यीभुत - प्रथम मास
77. वपुसारो जीवस्य आश्रय उतम - शुक्र
78. सहस्त्रा आध्मातस्वर्णवतम - शुक्र
79. जीवस्य आधारम उतम - रक्त
80. त्रीगुणम् सत्वबहुलो निर्मलम स्फिटिकोपनम् - महत्व/ बुद्धि
81. जीव का वास - मल , वीर्य, रक्त
82. कुर्चिकाकार - जीवक
83. वृषश्रृंगवत- ऋषभक
84. रसोनकंदवत - जीवक, ऋषभक
85. रब्बेसुम - मुलेठी
86. मदनफल- अन्नपायित्वात
87. अभावद्रव्य वर्ग व प्रतिनिधि द्रव्यवर्ग माना - भा.प्

Ayur_Vaidhya

15 Jan, 15:03


Medical Ethics


@ayurvaidhyaa


1. End of life care: Interventions such as life support are required to keep a person alive when he/she is brain dead or have zero chance of recovery. Different societies have different ethical norms regarding when to introduce life support and when to withdraw it. Some countries prefer keeping the patient alive whereas others prefer removing it when survival is improbable so that the facility can be used for other promising patients.

2. Informed Consent: Patients should be provided complete information about the procedure they are about to undergo and consent should follow based on true and complete information. For instance, removing kidneys from patients without their consent is blatantly unethical.

3. Attachment with patient: It is prescribed by medical ethics that a doctor is better off by not developing emotional attachment with a patient whom he has to scientifically treat. It enables a doctor to have objectivity, courage etc. On the other hand, one school of thought prescribes that a basic amount of compassion and devotion is rather needed towards patients.

4. Euthanasia: The moral acceptability of euthanasia varies with place and time. It involves the serious ethical issue of whether it is right to end a human life deliberately in case of serious irreversible suffering. One school of thought claims sanctity of human life whereas other school prefers ending human misery and allocating resources to other needy patients. In this light, Supreme Court of India allowed passive euthanasia in Aruna Shanbaug case 2011 and recently, it also allowed ‘advance directive’ or ‘living will’ for terminally ill patients.

5. Prescription: Doctors must ensure that they prescribe the most available, accessible, affordable and effective medicines to the patients, basically generic drugs instead of expensive patented drugs. The purpose is to help the needy and ensure public health. For instance, Government of India runs the Jan Aushadhi Yojana to increase supply of generic medicines.

6. Patient identity: Professional ethics in medicine mandate doctors to treat a patient with honesty and commitment irrespective of patient’s identity or background, even if the patient is a criminal. The Hippocratic oath taken by doctors establishes this ethical norm.

#Ethics
#cpd

Ayur_Vaidhya

07 Nov, 15:16


👍👍

Ayur_Vaidhya

14 Sep, 03:58


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Ayur_Vaidhya

14 Sep, 03:58


*विपाक-वीर्य-गुण-रस याद करने की Trick*

सर्वप्रथम विपाक और वीर्य के अनुसार 4 वर्ग बनाते हैं जो इस प्रकार वर्णित हैं:

१. मधुर विपाक, शीत वीर्य
२. कटु विपाक, शीत वीर्य
३. मधुर विपाक, उष्ण वीर्य
४. कटु विपाक, उष्ण वीर्य

अब इन वर्गों में आने वाले द्रव्यों का उल्लेख किया जाएगा (with tricks) :

१. विपाक - मधुर विपाक
वीर्य - शीत वीर्य
गुण - गुरु, स्निग्ध
रस - मधुर (mostly)
दोष कर्म - वातपित्त शामक (mostly)

इस वर्गीकरण में शामिल होने वाले द्रव्य निम्नलिखित हैं:

Trick:
*यहाँ वहाँ सार सत्व और गो*
+ मण्डूकपर्णी
+ शंखपुष्पी
+ दूर्वा
+ बला
+ छोटी एला
+ शाल्मली ( काण्ड निर्यास - मोचरस : कटु विपाक, शीत वीर्य, कषाय रस, लघु, स्निग्ध)
• यहाँ - यष्टिमधु
• वहाँ - विदारी
• सार - सारिवा
• सत्व - शतावरी
• और - आरग्वध
• गो - गोक्षुर

२. विपाक - कटु विपाक
वीर्य - शीत वीर्य
गुण - लघु, रुक्ष
रस - कटु, तिक्त (mostly), कषाय
दोष कर्म - कफपित्त शामक

इस वर्गीकरण में शामिल होने वाले द्रव्य निम्नलिखित हैं:

*अब श्वेता जट रक्त धोकर मूली पारो से कह कर उव गई*
+ खदिर
+ निम्ब
+ कुमारी

• अब - अ : अर्जुन, अशोक
ब : बीजक, ब्राह्मी
• श्वेता - श्वेत चंदन
• जट - जटामांसी, जम्बू
• रक्त - रक्त चंदन
• धोकर - धातकी
• मूली - मू : मुस्ता
ली : लवंग, लोध्र
• पारो - पा : पर्पट, पाषाणभेद
रो : रोहितक
• से - शल्लकी
• कह - कटुकी, कुटज, कंचनार
• कर - कर्पूर
• उव - उ : उशीर
व : वासा
• गई - ×

३. विपाक - मधुर विपाक
वीर्य - उष्ण वीर्य
गुण - लघु, स्निग्ध
रस - कटु, तिक्त, कषाय
दोष कर्म - कफवात शामक

इस वर्गीकरण में शामिल द्रव्य निम्नलिखित हैं:

Trick:
*पीले अश्व का बल से वध*
+ शालपर्णी
+ गुडूची
+ तिल
+ एरण्ड
+ शुण्ठी

• पीले - पिप्पली, पृश्नपर्णी, पुनर्नवा
• अश्व - अश्वगंधा
• का - कपिच्छुक
• बल - भल्लातक
• से - ×
• वध - वत्सनाभ

४. विपाक - कटु विपाक
वीर्य - उष्ण वीर्य
गुण - लघु, रुक्ष
रस - कटु, तिक्त, कषाय
दोष कर्म - कफवात शामक

इस वर्गीकरण में ऊपर वर्णित वर्गीकरण में आये हुए द्रव्यों को छोड़कर अन्य द्रव्य शामिल किए जाते हैं।



*त्रिदोष शामक द्रव्य:*
• त्रिफला
• मधुर दाडिम
• सुक्ष्म एला
• गंभारी
• गुडूची
• जटामांसी
• कर्पूर
• किरतिक्त
• अतीविषा
• हरिद्रा
• कुंकुम
• पाषाणभेद
• पाटला
• पृश्नपर्णी
• पुनर्नवा
• श्वेत सारिवा
• शालपर्णी
• शिरीष
• वाराहीकन्द
• वत्सनाभ


पांच रस वाले औषध द्रव्य:
1. आमलकी - लवण रहित पंचरस (अम्ल प्रधान)
2. हरीतकी - लवण रहित पंचरस (कषाय प्रधान)
3. रसोन - अम्ल रहित पंचरस (कटु प्रधान).

Ayur_Vaidhya

14 Sep, 03:58


*रस शास्त्र / भैषज्य कल्पना के योग (Tricks)*


*• आरोग्यवर्धनी वटी -*

Trick-

"PG लात तेरा सगा चिकु"

घटक -

पारद, गंधक, लौह भस्म, आभ्रक भस्म, ताम्र भस्म, त्रिफला, शिलाजतु, गुग्गलु, चित्रकमूल, कुटकी.


*• शंखवटी -*

Trick-

"शंखवटी त्रिकटु हिंग पंचलवण पर चिल्लाया"

घटक -

शंखभस्म, पिप्पली, सोंठ, मरिच, हिंग, सैंधव लवण, सौवर्चल लवण, सामुद्र लवण, विड लवण, औद्भिद लवण, पारद, चिंचाक्षार

*• चंद्रप्रभावटी -*

Trick -

∆ क्षारद्वेय + लवणत्रेय + त्रिमद + त्रिफला + त्रिजातक + षडूषण

(यवक्षार,सज्जीक्षार) + (सैंधवलवण,सौवर्चललवण,विडलवण) + (विडंग,चित्रकमूल,नागरमोथा) + (हरितकी,आमलकी,विभितकी) + दालचीनी,तेजपत्र,इलायची) + (पिप्प्ली,पिप्पलीमूल,चव्य,चित्रक,सौंठ,मरिच)
∆ हरि धन सोना बचाओ

(हरिद्रा, धान्यक, स्वर्णमाक्षिक, वचा)
∆ गज को दारू देव

(गजपिप्पली, दारुहरिद्रा, देवदारू)
∆ कच्चा विष गीला चीरेगा

(कर्चूर, अतिविषा, गिलोय, चिरायता)
∆ लोह वंश देता शर्करा

(लौहभस्म, वंशलोचन, दन्ती, शर्करा)
*• कुमार कल्याण रस -*

Trick-

"कुमारी रेसमा स्वर्ण लो"

घटक -

रस सिन्दूर, स्वर्ण भस्म, मुक्ता भस्म, आभ्रक भस्म स्वर्णमाक्षिक भस्म, लौह भस्म.


*•चंद्रामृत रस -*

Trick-

"त्रिफला & त्रिकटु श्वेत जी से चाय लो PG टंकण धन्य हुआ"

घटक -

हरितकी,आमलकी,विभितकि,पिप्पली,सोंठ,मरिच,श्वेत जीरक,सैंधवलवण,चव्य, लौह भस्म,पारद,गंधक,टंकण,धान्य

*•प्रवाल पंचामृत रस -*

Trick-

"प्रवाल मुक्त हुआ शंख की शुक्ति द्वारा"

घटक -

प्रवाल भस्म, मुक्ता भस्म, शंख भस्म, कपर्दिका भस्म, शुक्ति भस्म

*• आनंद भैरव रस-*

Trick-

"Hi त्रिकटु गंदा TV"

घटक -

हिंगुल, पिप्पली, सोंठ, मरिच, गंधक, टंकण, वत्सनाभ

*• योगेंद्र रस -*

Trick-

"योगी रेसमा वंग लो"

घटक -

रस सिंदूर, स्वर्ण भस्म, मुक्ता भस्म, आभ्रक भस्म, वंग भस्म, लौह भस्म

*• वसंत मालती रस -*

Trick-

"वसंत में सोना मोती ही मेरे घरपर"

घटक -

स्वर्ण भस्म, मोती पिष्ठी, हिंगुल, मरिच चूर्ण,खर्पर

*• श्वास कुठार रस -*

Trick-

"सास - PGV का मन टिका त्रिकटु पे"

घटक -

पारद, गंधक, वत्सनाभ, मन: शिला, टंकण, पिप्पली, सोंठ, मरिच.

*• हेमगर्भ पोटली रस-*

Trick-

"गर्भ रस ताम्र गंधी है"

घटक -

रस सिंदूर, स्वर्ण भस्म, ताम्र भस्म, गंधक

*• हिंगुलेश्वर रस -*

Trick-

"वहि पी"

घटक -

वत्सनाभ, हिंगुल, पिप्प्ली चूर्ण

*•त्रिभुवनकीर्ति रस-*

Trick-

"भुवन वत्स हींग लेकर टंकण को च्तुरुष्ण के पास लाया"

घटक -

वत्सनाभ, हिंगुल, टंकण, पिप्पली, सोंठ, मरिच, पिप्पलीमूल

*• नवायस लौह -*

Trick-

"तीन मुंह वाली विचित्र लौह"

घटक -

त्रिफला, त्रिकटु, मुस्ता, विडंग, चित्रक, लौह भस्म

*• रामबाण रस -*

Trick-

" मरा पड़ा गधा वत्स ले जाय"

घटक -

मरिच, पारद, गंधक, वत्सनाभ, लवंग, जायफल #cpd

Ayur_Vaidhya

14 Sep, 03:57


*मिश्रक वर्गीकरण (Tricks)*


*• बृहतपंचमूल-*

Trick-

"BTPTG"

Meaning-

बिल्व, तरकारी, पाटला, टिंटुक, गंभारी

*• लघुपंचमूल -*

Trick-

"SPBCG"

Meaning-

शालपर्णी, पृष्णपर्णी, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, गोक्षुर

*• कंटकपंचमूल -*

Trick-

"हस कार गोश"

Meaning-

हिंस्त्रा, करमर्द, गोक्षुर, शतावरी, सैरेयक

*• वल्लीपंचमूल -*

Trick-

"VA HAGU"

Meaning-

विदारी, अनंतमूल, हरिद्रा, अजश्रृंगी, गुडूची

*• तृणपंचमूल -*

Trick-

"सद ईशा काश"

Meaning-

सर, दर्भ, ईक्षु, शली, काश

*• मध्यमपंचमूल -*

Trick-

"MP - MBA"

Meaning-

मुद्गपर्णी, पुनर्नवा, माषपर्णी, बला, एरंड

*• पंचवल्कल -*

Trick-

"V + U = P"

Meaning-

वट, प्लक्ष, उदुम्बर, पीपल, पीपर

*• पंचपल्लव -*

Trick-

"आज बिल्व का बीज हैं"

Meaning-

आम, जामुन, बिल्व, कपित्थ , बीजपुर

*• स्वल्प त्रिफला -*

Trick-

"गम खा पुरुष"

Meaning-

गंभारी, खर्जूर, परुषक

*•चतुर्बीज -*

Trick-

"मैं चंद्र, मंगलयान पर हुं"

Meaning-

मेथी, चंद्रशूर, मंगरैल, यवानी

*• कटु चतुर्जातक -*

Trick-

"DTCM"

Meaning-

दालचीनी, तेजपत्र, छोटी इलायची, मरिच

*• त्रिकटु -*

Trick-

"PSM"

Meaning-

पिप्पली, सोंठ, मरिच

*• चतुरूषण -*

Trick-

"PSM + पिप्पलीमूल"

Meaning-

पिप्पली, सोंठ, मरिच, पिप्पलीमूल


*• पंचकोल -*

Trick-

"P2C2S"

Meaning-

पिप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक, शुंठी

*• षडूषण -*

पंचकोल + मरिच

*• पंचतिक्त -*

Trick-

"गुनि पक्व"

Meaning-

गुडूची, निम्ब, पटोल, कंटकारी, वासा

*• अम्लपंचक -*

Trick-

"आजा नानी मां"

Meaning-

अम्लवेतस, जम्बीर, मातुलुंग, नारंग, निम्बुक

*• अष्टवर्ग -*

जीवनीय गण + ऋद्धि + वृद्धि

*• त्रिकृषिक -*

Trick-

"शामु"

Meaning-

शुंठी, अतिविषा, मुस्ता


*• चातुर्भद्र -*

Trick-

"शामु + गुडूची"

Meaning-

शुंठी, अतिविषा, मुस्ता, गुडूची

*• त्रिमद -*

Trick-

"विचित्र नाग"

Meaning-

विडंग, चित्रक, नागरमोथा

*• क्षारषट्क -*

Trick-

"क्षाती पर लंगड़े कुटज का धाए से मुक्का"

Meaning-

तिल, लांगली, कुटज, धव, अपामार्ग, मुश्क्क

*• महापंचविष -*

Trick-

"महाकाल के वश मे मृश्र"

Meaning-

कालकूट, वत्सनाभ, सक्तुक, मुस्तक, श्रृंगिक.

*• पित्तपंचक -*

Trick-

"PM3 + गाय + घोड़ा

Meaning-

मत्स्य, मनुष्य, मयूर, गाय, घोड़ा
#cpd

Ayur_Vaidhya

20 Jul, 07:35


कस्तूरी (Kasturi):-
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1 कस्तूरी (Kasturi):-
2 तीन प्रकार की कस्तूरी (Kasturi):-
3 शुद्ध कस्तूरी (Pure Kasturi):-
4 अशुद्ध कस्तूरी (Impure Kasturi):-
5 कस्तूरी परीक्षा :-
6 गुण कर्म :-
7 योग :-
8 मात्रा :-
कपिला, पिंगला, कृष्णा कस्तूरी त्रिविधा क्रमात।
नेपाल‌‌ॆऽपि च कश्मीरॆ कामरूपॆ च जयते ।। ( राज नीघंटू)

कस्तूरीका रसे तिकता कटु: शालेशमनिलापहा ।
उषणा बलया तथा वृष्या शीतदोर्गंद्यानाशनी । ( यादव जी)
मृग नाभिमृगमद: कथितास्तू सस्त्रभित् ।
कस्तूरीका च कस्तूरी वेडमुख्या च सा समृता।। कामरूपॊद्धवा कृष्णा नेपाली नीलवर्णयुक् ।
काश्मीर कपिलाच्छाया कस्तूरी त्रिविधा सामृता ।।
कामरूपॊद्धवा श्रेष्ठा नैपाली मध्यमा भवेत् ।
काश्मीरदेशसम्भूता कस्तूरी हाधमा मता ।।
कस्तूरीका कतितिक्ता क्षारोष्णा शुक्रला गुरु:।
कफवात विषच्छृदिशीतडॉर्गंद्या शोषहृत् ।। (भाव प्रकाश कपुरादी वर्ग )

हिंदी नाम: कस्तूरी (Kasturi), मृगनाभी, सस्त्रभित्, वेधमुखिया
संस्कृत नाम: मृगमद, मृगनाभी, सस्त्रभिद, कस्तुरिका, कस्तूरी।
Latin name: Moskus
English name: Musk

यह कस्तूरीमृग (Moschus moschiferous ) विशेष हिरण की जाती है। जो मध्य एशिया, हिमालया, उत्तरी भारत, कश्मीर, नेपाल, भूटान, चीन, तीबात, आदि पर्वती चेत्रो के घने जंगलों में 8-12 हजार फीट की ऊंचई पर पाया जाता है। युवा अवस्था या मदकाल में कस्तूरी स्त्राव बनना प्राराब होता है। यह थैली लिंगाकर और नाभि के मध्य में होता है। इस काल में उष्मे कस्तूरी की गंध आती है।

यह मृग अन्य पदार्थ की गंध समाज कर उसके पीछे जंगल में इधर-उधर घूमता रहता है। वह झाड़ियों एवं वृषो को सूंघता है। इसी अवस्था में शिकारी लोग मृग को मारकर या कभी-कभी जीवित को पकड़कर कर्तुरी कोष्ट को निकाल सूखते है। इसके बाद मेह कस्तूरी खुरच कर अलग की जाती है , कस्तूरी 1 से 2 वर्ष के मृग की आयु में सफ़ेद वर्ण के पेस्ट के रूप में होती है, परन्तु धीरे-धीरे रक्त वर्ण के बड़े-बड़े गोल दानो के रूप में एवं तीव्र गंदी कस्तूरी प्राप्त होती है। बालक, वृद्ध, क्षीण अवस्था वाले मृग से कस्तूरी अल्प मात्रा में एवं स्वलप गंधवाली मिलती है।

तीन प्रकार की कस्तूरी (Kasturi):-
कामरूप कामदेश (कृषणवर्ण कली)- उत्तम
नेपाल देश (नीली)- माध्यम
कश्मीर (कपिल वर्ण)- अधम
शुद्ध कस्तूरी (Pure Kasturi):-
रक्ताब, कृष्ण वर्ण, पिंगलाब, मृदु, लघु, गोल बड़े दानों वाली, झिल्ली रहित तथा;
केवड़े के समान तेशन गंध वाली होती है। घोटने पर मृदु हो जाती है। स्वाद में तिक्त, कटु होती है। जल में नहीं घुलती, जलाने पर चमड़े के समान गंध आती है।

अशुद्ध कस्तूरी (Impure Kasturi):-
पानी में घुलने वाली पीला रंग यायप्त करती है व थोड़े समय बाद गंध रहित हो जाती है।

कस्तूरी परीक्षा :-
जल में डालने पर यदि वैसे ही रहे तोह असली होती है।
अग्नि पर दना डालने पर वह पिगल जाए तोह उषमे बुदबुदे निकले तोह असली होती है।
गढ़ने पर भी गंध में परिवर्तन नहीं होता है।
असली कस्तूरी मुलायम होती है।
कागज पर रख कर कागज पीला हो जाता है व जलाने पर मूत्र गंध आती है।
गुण कर्म :-
रस – कटु
गुण – तीक्षण, गुरु

वीर्य – उष्ण
विपाक – कटु, तिक्त
दोष-कर्म– कफ-वात शामक।
प्रभाव – नाड़ी दौर्बल्यता , हृद्या, शीतप्रशमक, वाजीकर
उपयोग – हृद्यरोग, सनिपताज ज्वार, दौर्बल्यता, अपस्मार, मूर्च्छा, अपस्मार, शीघ्रपतन, पक्षाघात,उन्माद (वातिक),दुर्गंध, शीत, वामन, विष।

योग :-
कस्तूरी भैरव रस, मृग नाभी आदि वटी, हिंगु कपूर वटी।

मात्रा :-
½-1 रत्ती
वीर्य काल – दीर्घ काल
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Ayur_Vaidhya

20 Jul, 07:35


गोरचन (Gorochan):-
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1 गोरचन (Gorochan):-
1.1 योग / Use :-
1.2 मात्रा / Dose :-
गोरचना रसे तिकाता उष्णविर्य च पचानी।
हंति वातकफ पांडु कामाला शिवेत्रिय च ।। ( यादव जी)
गोरोचना तू मंड्गल्या वन्घा गोरी च रोचना ।
गोरोचना हिमा तिकाता वश्या मदलकंटिदा ।।
विषालक्ष्मीग्रहोन्मादभ्रस्त्रवशतासुहत् । ( भाव प्रकाश कपूर आदि वर्ग)

हिंदी नाम: गोरोचन (Gorochan)
English name: Gall stone
संस्कृत नाम: गोपित, गोरोचना, रोचना,गोरी, रोचाना, मधलया

गोरोचन (Gorochan) गाय या बैल के पिताश्य में होने वाली पथरी होती है। जब गाय या बैल मर जाते है तब मरे हुए पशुओं के पिताश्य से गरोचन निकाल लेते हैं। जीवित गाय, बैल के पिताश्य से भी छेदन करके गोरोचन निकाल लेते हैं।
यह दिखने में गोल, छोटे बेर या सुपारी से नींबू के आकार का होता है। यह हल्का एवं किंचित मृदु होता है।

वर्ण: पीत या धूसर पीत या रक्त आभ नारंगी
इसमें मृदु सुगंध व रस में तिक्त प्रतीत होता है।
रस: तिक्त
गुण: लघु, रुक्ष
वीर्य: उष्ण (Yadav Ji), शीत (Bhavprakash)
विपाक: कटु
दोष-कर्म: वातकफ शामक
प्रभाव: मेध्य, दीपन, अनुलोमन, यकृतुटेजक, लेखन, शोथ हन, अश्मारिहन, पोस्टिक।
उपयोग: विष हर, उन्माद, अपस्मार, मनासरोग, शिरोरोग, जीर्ण ज्वार, वृकाष्मारी कांति बढ़ाने वाला, अलक्ष्मी नाशक, ग्रहबाधा, शतज रक्तस्राव व ग्रवस्त्रव दूर करने वाला, मृदु विरेचक, आर्तावजनक।
योग / Use :-
अपश्मार मेह ½gm गुलाब अर्क मेह पीसकर पीना चाहिए।

मात्रा / Dose :-
1 – 4 रती ।
#copied

Ayur_Vaidhya

20 Jul, 07:35


हिंदी नाम: संभर, बारह सिंगा
संस्कृत नाम: श्रृंग, बहुश्रृंग, विषान
English name: Horn of stag

गृह्य लक्षण : जो वजन में गुरु, स्थूल, अंदर से श्वेत, ठोस, सनिग्ध रहित हो।
भास्म विधि : छोटे-छोटे टुकड़े करके कोयले के तीव्र अग्नि के ऊपर रख दिया जाता है, इससे यह चूर चूर हो जाता है।इसके बाद में इसमें घृत कुमारी स्वरस के साथ;

मर्दन करके टिकिया बनाई जाती है। सुखाने के बाद में संपुट में बंद करके पुट देते है।
रस : मधुर, कषाय
गुण : स्निग्ध, गुरु
वीर्य : उष्ण
विपक : मधुर
दोषकर्म : वात-कफ शामक।
प्रभाव : दीपन, वेदनस्थापन, शोथहर, लेखन, श्वस कास में उपयोगी, पाशर्व शूल।
योग : विषाण भस्म, क्षय केशरी रस
मात्रा : 2-4 रती
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Ayur_Vaidhya

19 Jul, 19:40


Excess Caffeine Intake May Be Linked To Increased Risk of Osteoporosis

▫️University of South Australia Researchers Have A Bone To Pick When It Comes To Drinking Too Much Coffee As New Research Finds That Excess Caffeine May Be Linked To An Increased Risk of Osteoporosis.
▫️Investigating The Effects of Coffee on How The Kidneys Regulate Calcium In The Body, Researchers Found That High doses of Caffeine (800 mg) Consumed Over A Six-Hour Period Almost Doubled The Amount of Calcium Lost In The Urine.
▫️This Is The First Study To Report The Impact of High-dose, Short-Term Caffeine Intake on Renal Clearance of Calcium, Sodium, And Creatinine In Healthy Adults.
The Study Was Published In British Journal of Clinical Pharmacology
@ayurvaidhyaa



http://doi.org/10.1111/bcp.14856

Ayur_Vaidhya

06 Jul, 18:36


https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1732881

Minister of Ayush Shri Kiren Rijiju launches five Important Portals on Ayush sector
“All Ayush stakeholders to be benefited by these initiatives”
@ayurvaidhyaa

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