उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

@urdubhashaaurshayari


उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

31 May, 04:19


# हरिवंश राय बच्चन

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई


जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई


जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई


मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर 
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है

जो बीत गई सो बात गई

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

29 May, 02:25


#वसीम बरेलवी

मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है
जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है

उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है
जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मिरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

05 Apr, 02:14


# साहिर लुधियानवी

कभी कभी मिरे दिल में ख़याल आता है

कि ज़िंदगी तिरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी

ये तीरगी जो मिरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है
तिरी नज़र की शुआ'ओं में खो भी सकती थी

अजब न था कि मैं बेगाना-ए-अलम हो कर
तिरे जमाल की रानाइयों में खो रहता

तिरा गुदाज़-बदन तेरी नीम-बाज़ आँखें
इन्ही हसीन फ़सानों में महव हो रहता

पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की
तिरे लबों से हलावत के घूँट पी लेता

हयात चीख़ती फिरती बरहना सर और मैं
घनेरी ज़ुल्फ़ों के साए में छुप के जी लेता

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं तिरा ग़म तेरी जुस्तुजू भी नहीं

गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं

ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अन-जानी रहगुज़ारों से

मुहीब साए मिरी सम्त बढ़ते आते हैं
हयात ओ मौत के पुर-हौल ख़ारज़ारों से

न कोई जादा-ए-मंज़िल न रौशनी का सुराग़
भटक रही है ख़लाओं में ज़िंदगी मेरी

इन्ही ख़लाओं में रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मिरी हम-नफ़स मगर यूँही

कभी कभी मिरे दिल में ख़याल आता है

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

24 Jun, 09:23


# बशीर बद्र

वो नही मिला तो मलाल क्या, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
उसे याद करके ना दिल दुखा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

ना गिला किया ना ख़फ़ा हुए, युँ ही रास्ते में जुदा हुए
ना तू बेवफ़ा ना मैं बेवफ़ा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

तुझे एतबार-ओ-यकीं नहीं, नहीं दुनिया इतनी बुरी नहीं
ना मलाल कर, मेरे साथ आ, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

वो वफ़ाएँ थीं, के जफ़ाएँ थीं, ये ना सोच किस की ख़ताएँ थीं
वो तेरा हैं, उसको गले लगा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

वो ग़ज़ल की कोई किताब था , वो गुलों में एक गुलाब था
ज़रा देर का कोई ख़्वाब था, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

मुझे पतझड़ों की कहानियाँ, न सुना सुना के उदास कर
तू खिज़ाँ का फूल है, मुस्कुरा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

वो उदास धूप समेट कर कहीं वादियों में उतर चुका
उसे अब न दे मिरे दिल सदा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

ये सफ़र भी किताना तवील है , यहाँ वक़्त कितना क़लील है
कहाँ लौट कर कोई आएगा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया

कोई फ़र्क शाह-ओ-गदा नहीं, कि यहाँ किसी को बक़ा नहीं
ये उजाड़ महलों की सुन सदा , जो गुज़र गया सो गुज़र गया

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

14 Jun, 02:31


निदा फ़ाज़ली

गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया

इक इश्क़ नाम का जो परिंदा ख़ला में था
उतरा जो शहर में तो दुकानों में बट गया

पहले तलाशा खेत फिर दरिया की खोज की
बाक़ी का वक़्त गेहूँ के दानों में बट गया

जब तक था आसमान में सूरज सभी का था
फिर यूँ हुआ वो चंद मकानों में बट गया

हैं ताक में शिकारी निशाना हैं बस्तियाँ
आलम तमाम चंद मचानों में बट गया

ख़बरों ने की मुसव्वरी ख़बरें ग़ज़ल बनीं
ज़िंदा लहू तो तीर कमानों में बट गया

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

18 Mar, 05:11


# नज़ीर अकबराबादी
जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों
तब देख बहारें होली की।

परियों के रंग दमकते हों
तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों
तब देख बहारें होली की।

महबूब नशे में छकते हो
तब देख बहारें होली की।


हो नाच रंगीली परियों का,
बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की,
कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को,
और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे,
कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों,
तब देख बहारें होली की

गुलज़ार खिलें हों परियों के
और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से
खुश रंग अजब गुलकारी हो।

मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो
और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को
अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों
तब देख बहारें होली की।

और एक तरफ़ दिल लेने को,
महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों,
कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के,
कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली,
कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों,
तब देख बहारें होली की।।

ये धूम मची हो होली की,
ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा खींची घसीटी पर,
भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो
माजून, रबें, नाच, मज़ा और
टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो
लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो,
कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों,
तब देख बहारें होली की।।

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

11 Mar, 16:45


# फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ के गुलशन का कार-ओ-बार चले

क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आकबत सँवार चले

मकाम 'फ़ैज़' कोई राह में जँचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

कभी तो सुबह तेरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्कबार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल गरीब सही
तुम्हारे नाम पे आयेंगे ग़म-गुसार चले

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब
गिरह में ले के गिरेबाँ का तार तार चले

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

20 Feb, 05:58


# बशीर बद्र
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

15 Nov, 13:40


# जोश मलीहाबादी

सोज़े-ग़म देके उसने ये इरशाद किया ।
जा तुझे कश्मकश-ए-दहर से आज़ाद किया ।।

वो करें भी तो किन अल्फ़ाज में तिरा शिकवा,
जिनको तिरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया ।

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया,
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया ।

इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद,
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया ।

इतना मासूम हूँ फितरत से, कली जब चटकी
झुक के मैंने कहा, मुझसे कुछ इरशाद किया

मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद-ए-मौत
मैंने ने हर लुत्फ़ के मौक़े पे तुझे याद किया

मुझको तो होश नहीं तुमको खबर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया

वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझ को न भुलाया न कभी याद किया

कुछ नहीं इस के सिवा 'जोश' हारीफ़ों का कलाम
वस्ल ने शाद किया, हिज्र ने नाशाद किया

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

12 Nov, 16:24


# फ़िराक़ गोरखपुरी

सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं

यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क
मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं

मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं

ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर
ये भी सच है कि तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं

दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में
लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं

बदगुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं

शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख़ से जो
साफ़ कायल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं

मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं

बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम
कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं

मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि “फ़िराक”
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

26 Sep, 04:50


क़िस्मत में मेरी चैन से जीना लिख दे
डूबे ना कभी मेरा सफ़ीना लिख दे
जन्नत भी गवारा है मगर मेरे लिए
ए क़ातिब-ए-तक़दीर मदीना लिख दे

ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जायेंगे
हामीं-ए बेकसाँ क्या कहेगा जहाँ
आपके दर से ख़ाली अगर जायेंगे

ताजदार-ए-हरम, ताजदार-ए-हरम
कोई अपना नहीं ग़म के मारे हैं हम
आपके दर पर फ़रयाद लाये हैं
हो निगाहे-ए-करम, वरना चौखट पे
हम आपका नाम ले-ले मर जाएंगे'

# पुरनम इलाहाबादी

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

19 Sep, 13:08


जो पुल बनाएँगे
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएँगे।

सेनाएँ हो जाएँगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगे राम।

जो निर्माता रहे
इतिहास में
बन्दर कहलाएँगे।

~ अज्ञेय

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

19 Sep, 13:06


कहा सागर ने : चुप रहो!
मैं अपनी अबाधता जैसे सहता हूँ,
अपनी मर्यादा तुम सहो।
जिसे बाँध तुम नहीं सकते
उस में अखिन्न मन बहो।

मौन भी अभिव्यंजना है :
जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो।

~ अज्ञेय

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

18 Sep, 04:45


मिले मुझे भी अगर कोई शाम फ़ुर्सत की
मैं क्या हूँ कौन हूँ सोचूँगा अपने बारे में

-इक़बाल साजिद

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

18 Sep, 04:32


आएँगे, अच्छे दिन आएँगे
गर्दिश के दिन ये कट जाएँगे
सूरज झोपड़ियों में चमकेगा
बच्चे सब दूध में नहाएँगे

जालिम के पुर्जे उड़ जाएँगे
मिल-जुल के प्यार सभी गाएँगे
मेहनत के फूल उगाने वाले
दुनिया के मालिक बन जाएँगे

दुख की रेखाएँ मिट जाएँगी
खुशियों के होंठ मुस्कुराएँगे
सपनों की सतरंगी डोरी पर
मुक्ति के फरहरे लहराएँगे

- गोरख पांडे

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

18 Sep, 04:30


राजा बोला रात है
रानी बोली रात है
मंत्री बोला रात है
संतरी बोला रात है
सब बोले रात है
यह सुबह सुबह की बात है...

- गोरख पांडे

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

17 Sep, 15:49


तभी मैं मशवरा करता हूँ सबसे
जब अपने दिल की करना चाहता हूँ

शरीक़ कैफ़ी

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

17 Sep, 15:04


ऐसी वैसी बातों से तो अच्छा है खामोश रहो
या फिर ऐसी बात कहो जो खामोशी से अच्छी हो।

डॉ. नवाज़ देवबन्दी

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

30 May, 13:31


ग़ज़ल
# बशीर बद्र

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

उर्दू भाषा और शेर ओ शायरी

17 Jan, 16:41


ग़ज़ल
# फ़ैज़ अनवर

कोई फ़रियाद तेरे दिल मे दबी हो जैसे
तूने आँखों से कोई बात कही हो जैसे

जागते-जागते इक उम्र कटी हो जैसे
जान बाकी है मगर साँस रुकी हो जैसे

हर मुलाकात पे महसूस यही होता है
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे

राह चलते हुए अक्सर ये गुमां होता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे

एक लम्हें में सिमट आया सदियों का सफ़र
ज़िन्दगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो जैसे