जब तक दुनिया में कविताएँ लिखी जा रहीं हैं तब तक उम्मीद जिंदा है
उम्मीद है कि कहीं कोई प्रेमी अब भी गुलाब और जंगली फूलों में भेद भाव नहीं कर रहा उम्मीद है कि अब भी कोई चाँद को देखकर किसी का चेहरा याद कर रहा है उम्मीद है की अब भी कलम की स्याही पूरी तरह से नहीं सूखी उम्मीद है कि अब भी मजदूरों को जमीन पर नही बल्कि कुर्सी पर बैठने की लड़ाई जारी है उम्मीद है कि अब भी नाकामयाब मोहब्बतें कविताओं में मुकम्मल हो रहीं हैं
कविताएं जो चुप रह कर भी गूँजती हैं उम्मीद के समुंदर को सूखने से रोकती हैं ......
प्रेम मे कितना खुबसूरत होता है पसंदीदा पुरुष के कंधे पर प्रेमिका का सिर टिका कर बैठना... जैसे दुनिया की तमाम चिंताओं और परेशानियों से मुक्त होकर एक स्त्री का भूल जाना अपने जीवन के तमाम अवसाद को...❤️
वे... तुम्हारे रोपे धान अब पक रहें हैं कुछ पक कर लटक गयें हैं मैं छुआ धान की बाली तो झंकार ऐसे कि तेरे चूड़ियों की खनक लिपट गये हैं एक दिन चली शाम को पूरवां हवाएँ... वे गिरकर , एक दूसरे से लिपट गयें हैं !!