सरल सा तो है प्रश्न मेरा,तुम सामान्य सा उत्तर देना
समझ गए तो मुस्कान अधर पर, ना समझे तो निरुत्तर देना ।।
गर शर्म आए नयन संचार से, दुपट्टा माथे धर लेना
प्रार्थना पत्र को हे प्रिय तल्लीनता से पढ़ लेना ।।
गंभीर कर मंथन उपसंहार मर्यादा के भीतर देना
सरल सा तो है प्रश्न मेरा,तुम सामान्य सा उत्तर देना ।।
तू शांत स्वभाव का, स्वयं में शुद्ध, सरस प्रिय
मुस्कान लिखूं कली खिलना, संवाद लिखूं रस प्रिय ।।
संस्कार तुम्हारे है पता मुझे, भंग ना करोगे शालीनता
मोह, क्रोध, दया, शीतल परिपूर्ण भरी है संवेदनशीलता ।।
सहज, सुगम, सुंदर, संक्षेप में रखना अपनी बात को
समय मिलन का लिखना प्रिय अगली पूर्णिमा की रात को ।।
तुम कोमल कली मेरे बाग का मैं सिंचू तन्मय से
भंवरो से मैं दूर रखूं, रखूं दूर बिपदा भय से ।।
समस्या साधारण नही मेरा इस बात पे दृष्टिगोचर देना
सरल सा तो है प्रश्न मेरा,तुम सामान्य सा उत्तर देना ।।