, कुछ परिस्थितियों में किरायेदार, प्रॉपर्टी का मालिक बन सकता है:


अगर कोई किरायेदार किसी प्रॉपर्टी पर 12 साल या उससे ज़्यादा समय से कब्ज़ा करता है, तो वह उस प्रॉपर्टी को बेचने का अधिकारी होता है. इसे 'प्रतिकूल कब्ज़ा' या 'एडवर्स पोज़ेशन' कहते हैं.

इस कानून का फ़ायदा उठाने के लिए, किरायेदार को यह साबित करना होता है कि उसने लंबे समय से प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा किया है और उसमें कोई रुकावट नहीं आई.

किरायेदार को प्रॉपर्टी डीड, टैक्स रसीद, बिजली या पानी का बिल, गवाहों के एफ़िडेविट वगैरह की भी ज़रूरत होती है.


यह कानून सरकारी संपत्ति पर लागू नहीं होता.

मकान मालिक चाहे, तो कोर्ट में जाकर इस मामले पर फ़ैसला ले सकता है.
किरायेदारों और मकान मालिकों के बीच संतुलन बनाने के लिए, किराया नियंत्रण अधिनियम बनाया गया है. इस अधिनियम के तहत, किरायेदारों को बिना वजह बेदखल नहीं किया जा सकता और उन्हें अतिरिक्त किराया भी नहीं देना होता.